राजस्थान की सब्जी काजू बदाम से भी है महंगी, 1200 रूपये किलो पहुंचे इसके दाम
राजस्थान के चूरू जिले के आसपास सांगरी सब्जी पाई जाती है यह इसी मौसम में बाजार में बिकने आती है। हर सीजन में इसकी खपत 25 टन के करीब है। इस साल इसकी पैदावार बहुत ही कम हुई है। ऐसे में इसके दाम 1200 रूपये किलो तक पहुंच गए हैं। शहरों में यह सब्जी बहुत खास हो गई है।
देश में इन दिनों एक ऐसी सब्जी भी बिक रही है जिस के दाम आसमान छू रहे हैं। यह एक ऐसी सब्जी है जिस की डिमांड कई राज्यों में है । राजस्थान के चूरू और शेखावाटी में सांगली नाम की सब्जी की खेती होती है । लोग इसे बड़े चाव से खाते हैं । इसके दाम इन दिनों 1200 रूपये तक पहुंच गए हैं। पहले इसकी कीमत 600 से ₹700 रहती थी। लेकिन अब इसके दाम दोगुने हो गए हैं। इसकी वजह यह है कि इस फसल में गिलडू रोग लग गया है। जिससे पैदावार बहुत कम हो गई है।
रोग लगने के चलते इस सब्जी का उत्पादन 35 फ़ीसदी यानी करीब 8 टन ही रह गया है। इसी कारण से इस बार सांगरी के भाव में इतनी तेजी देखने को मिल रही है। तो वहीं बारिश और भीषण गर्मी के चलते इस फल को काफी नुकसान हुआ है। मार्च महीने में इस बार भीषण गर्मी पड़ रही है।
3 साल बाद अमेरिकन बदाम से ज्यादा भाव
कारोबारियों का कहना है कि इस बार सांगरी के भाव काफी बढ़ गये हैं।बताया जा रहा है कि लॉकडाउन के दौरान मार्च 2020 में इसके दाम हजार रुपए किलो तक बढ़ गए थे। उस समय अमेरिकन बादाम के भाव ₹800 किलो थे लेकिन 3 साल बाद एक बार फिर से इसके भाव 1200 रूपये प्रति किलो के हिसाब से पहुंच गए हैं । बता दें कि सांगरी एक पारंपारिक सब्जी है । जिसमें कई मसालों, तेल के साथ केर के फलो और सांगरी की फलियों को पकाया जाता है। केर और सांगरी के पेड़ हरियाणा और राजस्थान में ज्यादा पाए जाते हैं । जंगलों में उगने के कारण इसकी कीमत साधारण सब्जियों से महंगी होती है।
1899 – 1900 के दौरान राजस्थान में भीषण अकाल पड़ गया था
सांगरी की सब्ज़ी खाने से रोगों से लड़ने की ताकत बढ़ जाती है । सांगरी में आयरन, जिंक ,प्रोटीन ,पोटेशियम मैग्नीशियम ,फाइबर और कैल्शियम बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है। वहीं स्थानीय लोगों का मानना है कि सांगरी की खेती के पीछे भी एक रोचक कहानी है । साल 1899-1900 के दौरान राजस्थान में भीषण अकाल पड़ा था। जिससे छप्पनिया काल कहां गया | इस अकाल को लेकर यह भी कहा जाता है यह दौर ऐसा था कि लोगों के लिए ना तो खाने के लिए कुछ था और ना ही पीने के लिए कुछ था| तब लोगों ने केर और सांगरी की फली खाकर अपने आपको किसी तरह जिंदा रखा था | तब से लोग इसकी खेती करने लगे और इसकी एंट्री किचन तक हो गई।