ऐसे काम बिल्कुल ना करें जिससे जवानी में चली जाए आंखों की रोशनी |
आंखों की रोशनी छीनने वाली बीमारियों के ग्रुप को ग्लूकोमा कहते हैं इसकी शुरुआत जवानी में ही हो जाती है यह बीमारी चुपचाप शरीर में हमला करती है इसके लक्षण भी नजर नहीं आते मॉडल साइंस में अभी तक इसका इलाज नहीं ढूंढ सका है इसी बीमारी के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए हर साल वर्ल्ड ग्लूकोमा उदय और वर्ल्ड ग्लूकोमा वीक मनाया जाता है।
ग्लूकोमा आंखों से जुड़ी एक बीमारी होती है इससे काला मोतियाबिंद भी कहा जाता है आमतौर पर लोगों को यह पता भी नहीं लगता यह बीमारी अगर एक बार हो जाए तो आपको को अंधा कर देती है लेकिन इसके कभी जरूरी बात यह है कि अगर एक बार ग्लूकोमा में आंखों की रोशनी चली जाए तो वह किसी भी उपाय से वापस नहीं आ सकती ग्लूकोमा एक साइलेंट बीमारी होती है इसके लक्षण भी शुरुआती तौर पर नजर नहीं आते यही वजह होती है कि यह आख में धीरे-धीरे बढ़ती रहती है जिससे आंखों की रोशनी धीरे-धीरे खत्म हो जाती है।
आधुनिक विज्ञान मैं अभी तक इसका कोई इलाज नहीं ढूंढ पाया है एम्स के डॉक्टरों का कहना है कि यह बीमारी बेहद अजीब होती है आंखों में दी जाने वाली विशेष दवाई भी इस बीमारी को पैदा कर सकती हैं ग्लूकोमा के बारे में बहुत कम लोगों को इसकी पूरी जानकारी होती है ऐसे में हर साल वर्ल्ड ग्लूकोमा डे और वर्ल्ड ग्लूकोमा वीक भी बनाया जाता है
ग्लूकोमा रोग क्या होता है?
ग्लूकोमा को भारत में काला मोतियाबिंद के नाम से भी जाना जाता है इसके बारे में पता करना काफी मुश्किल है इसकी वजह यह होती है कि इसके शुरुआती लछड़ नजर नहीं आते आंखों में यह बीमारी बचपन जवानी में भी हो सकती है आंखों के जिन रोगो से ऑप्टिक नर्व डैमेज होती है इस के वर्क को ग्लूकोमा कहा जाता है | इसमें ब्रेन तक करंट नहीं पहुंच पाता है आंखों के सामने हमेशा अंधेरा छाया रहता है कुछ भी दिखाई नहीं देता यह बीमारी लोगों को अंधा बना देती है यह नरम ही आंखों से देख रही छवि को सिग्नल के रूप में दिमाग तक पहुंचाती है जिसके बाद हम देख पाते हैं।
आई ड्रॉप डालने से बढ़ जाती है बीमारी
डॉक्टरों का कहना है कि अक्सर छोटे बच्चों की आंखें भी लाल हो जाती है ऐसे में बहुत से लोग मेडिकल स्टोर से भी ड्रॉप ले आते हैं और बच्चों की आंखों में डाल देते हैं इस दवा को महीनों तक डालते रहते हैं इससे बच्चे हो या बड़े ग्लूकोमा की चपेट में आ जाते हैं यह स्टोराइट वाली आई ड्रॉप आंखों की रोशनी छीन लेती है।
कॉफी से भी हो जाता है काला मोतियाबिंद
वही अमेरिकन एकेडमी ऑफ ऑप्थल्मोलॉजी के अनुसार, यह देखा गया है कि 135 से डेढ़ सौ एमजी कैफ़ीन लेने वाली एक कप कॉफी पीने से इंट्राओकुलर प्रेशर बढ़ जाता है हालांकि अधिकतर शोध इस खतरे को उन लोगों से ज्यादा मानते हैं जिनकी पहली ही ग्लूकोमा की फैमिली हिस्ट्री रहती है।
इन लोगों को होता है ग्लूकोमा से सबसे ज्यादा खतरा
अगर परिवार में किसी को ग्लूकोमा ( काला मोतियाबिंद) है तो उन लोगों को यह बीमारी होने का खतरा ज्यादा हो जाता है डायबिटीज और हाई बीपी के मरीजों को आंखों में ग्लूकोमा होने की शिकायत बढ़ जाती है वहीं अगर किसी की औकात में ग्लूकोमा हो तो दूसरी आंख में भी होने का जोखिम बढ़ जाता है जवानी में अगर आपका नंबर प्लस या माइनस में तेजी से बढ़ रहा है तो उन्हें भी काला मोतियाबिंद होने का खतरा रहता है हालांकि इसमें बच्चों का नंबर तेजी से बढ़ता ही रहता है।